अध्यात्मिक पुरुष कैसे बने। भद्र व्यक्ति कैसे बने । how to become a gentleman.
लोग अध्यात्म के नाम पर प्रायः ध्यान समाधि कुंडलिनी आत्मा साक्षरता ईश्वर प्राप्ति ब्रह्म ज्ञान आदि की बातें करते रहते हैं और वैसा करना कुछ गलत भी नहीं है इससे अपने लक्ष्य एवं मंजिल का सुमिरन होता रहता है और पदों को सही दिशा व गति मिलती रहती है लेकिन जरूरत से अधिक चर्चा मात्र होने पर फिर धीरे-धीरे यह अपनी सार्थकता खो बैठते हैं और अनुभूतियों से रीता कोरा बौद्धिक जाल जंजाल ही हमारे पास से बचता है नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है राम और फिर से मैं आप सभी का स्वागत करता हूं दोस्तों आज मैं चाहता हूं कि आप आज कुछ ज्ञान प्राप्त कर लें तो चलिए दोस्तों बिना किसी देरी के आज मैं आपसे कुछ कमाल की बातें करता हूं कुछ ऐसी बातें करता हूं जिससे कि आपका जो व्यक्तित्व है वह बदल जाए आपके अंदर की अच्छाई और मजबूत हो जाए आप उत्साहित हो ताकि आप अपने काम को और अच्छे से करें और सफल बने और एक अच्छे व्यक्ति बन कर के समाज का मार्गदर्शन करें तो चलिए दोस्तों बिना किसी देरी के शुरू करते हैं कुछ लोग अध्यात्म के नाम पर भजन नंदी बन जाते हैं तो कुछ आंखें बंद कर ध्यान व मंत्रों के रतन को अध्यात्म मान बैठते हैं कुछ माया में लिप्त किंतु जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य के ब्रह्म ज्ञान की चर्चा में अध्यात्म की इतिश्री मान बैठते हैं और कुछ को कुंडलिनी जागरण से लेकर चमत्कार सिद्धियों की चर्चा में अध्यात्म का मर्म समझ आता है यहां भक्ति भजन ध्यान ब्रम्हचर्य कुंडलिनी जागरण आदि की बुराई नहीं की जा रही लेकिन अध्यात्म का व्यावहारिक पक्ष समझे बिना इसके साधना पथ के मर्म को समझे बिना कोरे वाक विलास बौद्धिक उछल कूद एवं कर्मकांडी रटन को अधूरा कहा जा रहा है अध्यात्म के शिखर से आरोहण से पूर्व हमें इसके प्राथमिक सोपानो को पार करना होता है यह सोपान ही आगे की यात्रा की आधार भूमि तैयार करते हैं इन्हीं पर अध्यात्म का प्रसाद खराब होता है पहला अध्यात्मिक सोपान ध्यान समाधि नहीं बल्कि यह निर्णय यम निय की आधार भूमि तैयार करते हैं इन्हें पर अध्यात्म का प्रसाद खड़ा होता है पहला अध्यात्मिक सोपान ध्यान समाधि नहीं बल्कि यम नियम है अपने तन मन व स्वभाव की मूलभूत दुर्बलता ओं का परिष्कार करते हुए जीवन में शांति स्थिरता एवं संतुलन को साधना है जो हमें अध्यात्म के उच्चतम सोपानो के लिए तैयार कर सके यदि हम शरीर से स्वस्थ नहीं हैं अशक्त एवं निर्मल हैं और ऊपर से आलसी भी हैं तो फिर ऐसे जीवन से कुछ अधिक आशा नहीं की जा सकती अध्यात्म तो दूर भौतिक जगत में भी इससे कुछ भरा प्रयोजन सिद्ध होने वाला नहीं भारतीय मानस की नब्ज टटोल ते हुए कभी स्वामी विवेकानंद ने यह कहा था कि गीता के कोरे ज्ञान से अच्छा है कि पहले हम शरीर से मजबूत बने अधिक पुष्ट शरीर एवं मुद्दों के साथ हम गीता की ओर और बेहतर से समझ सकेंगे यही स्थिति बौद्धिक प्रमाद एवं अज्ञानता से ग्रस्त मन की है स्वाध्याय एवं चिंतन मनन से हीन व्यक्ति में व बौद्धिक जिज्ञासा नहीं उभर पाती जिससे कि वह अध्यात्म की गहरी बातों को समझ सके ऐसे में उसके तोता रटन व अंधविश्वास से होने का खतरा अधिक रहता है यदि कहीं हठधर्मिता भी साथ जुड़ गई तो फिर ऐसे कट्टरवाद से किन्ही सकारात्मक परिणामों की आशा नहीं की जा सकती इसी तरह यदि जीवन अस्त-व्यस्त है दिशाहीन है तो ऐसे में अध्यात्म की चर्चा बेईमानी होगी यदि हमारी दिनचर्या अव्यवस्थित है जीवन की प्राथमिकताएं स्पष्ट नहीं अपने कर्तव्य पालन के प्रति हम ईमानदार नहीं तो ऐसे में समय के श्रेष्ठ एवं सार्थक उपयोग के अभाव में फिर काल के अधिपति महाकाल की अराधना मात्र कर्मकांड तक ही सीमित रहेगी अध्यात्म का शुभारंभ तो आप अनुशासित जीवन चर्या एवं स्वस्थ और नैतिकता से होता है सेवा के नाम पर अपने संकीर्ण स्वार्थ के साधन का अध्यात्म से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है जो व्यक्ति अपनी दुर्बलता ओं न्यूनतम को समझने की क्षमता खो बैठा हो उससे अध्यात्म तो दूर सामान्य जीवन में संतुलित व्यवहार की आशा भी नहीं की जा सकती ऐसी मानसिकता के साथ अध्यात्म के नाम पर की जा रही वंचना से सामूहिक जीवन में किन्ही सकारात्मक परिणामों की आशा नहीं की जा सकती क्योंकि अध्यात्म के नाम पर स्वार्थ केंद्रित कृतियों का सामूहिक उत्कर्ष से कोई लेना देना नहीं है तो दोस्तों आज के इस टॉपिक में मैं राम यही कहना चाहता हूं कि आप अगर आध्यात्मिक या फिर आप अगर ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले खुद की मानसिकता को बदलें अगर आप गीता कुरान बाइबल के ज्ञान को प्राप्त करना चाहते हैं या फिर खुद को एक ज्ञानी पुरुष बनाना चाहते हैं या फिर खुद को अध्यात्मिक बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले गीता बाइबल कुरान को पढ़ने से पहले खुद को एक स्पष्ट मजबूत पुरुष बनाएं खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बना है क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है यानी कि आप को सकारात्मक बनना होगा शारीरिक और मानसिक दोनों।
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