भगवान विष्णु की कहानी।

 भगवान विष्णु की कहानी।



नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सर मैं राम आप सभी का स्वागत करता हूं आपके अपने प्लेटफार्म पर जहां पर मैं आपके लिए हर रोज कुछ ना कुछ नए टॉपिक्स पर आर्टिकल्स लाता रहता हूं मैं आपको ऑनलाइन पैसा कैसे कमाना है ऑनलाइन सिखाता भी हूं और आपको ढेर सारी कहानियां भी सुनाता हूं और आपकी जिंदगी को आसान बनाता हूं तो आज एक ऐसी ही कहानी के साथ आया हूं जो कि बहुत ही रोचक कहानी है मैंने सोचा आप से जरूर बांटना चाहिए जी हां दोस्तों अच्छी कहानी सुनिए या अच्छे काम कीजिए तो उसे बाटिए जरूर क्योंकि बांटने से आपके साथ साथ उन लोगों को भी फायदा होगा जो लोग उसे सुनेंगे समझेंगे या आजमा आएंगे तो चलिए दोस्तों बिना किसी देरी के शुरू करते हैं बैकुंठ लोक में विराजमान भगवान विष्णु को ध्यान मग्न देखकर देवर्षि नारद ने देवी लक्ष्मी से उनका मनोभाव जानना चाहा देवी लक्ष्मी नारद को संबोधित करके कहने लगी देवर्षि वे भूलोक स्थित अपने सबसे बड़े भक्त की उपासना कर रहे हैं यह सुन देवर्षि नारद भरे आहत हुए अपने से भी बड़े भक्तों को देखने को व्यग्र वे तत्काल ही भूल लोग चले गए भगवान विष्णु के सबसे प्रिय भक्त की परीक्षा लेने के उद्देश्य से वे उस स्थान पर पहुंचे जहां के विषय में देवी लक्ष्मी ने उन्हें बताया था वहां उन्हें पशु चरमो से गिरा एक मेला कुचला व्यक्ति दिखाई दिया वाह पसीने में लथपथ कमरे की सफाई में मग्न था तीव्र दुर्गंध के कारण उसके पास तो ना जा सके परंतु उनको यह विचित्र लगा कि यह व्यक्ति भगवान का प्रिय भक्त होगा उनके मन में जिज्ञासा जागृत हुई कि क्यों ना इस व्यक्ति की दिनचर्या का निरीक्षण किया जाए वह दूर खड़े नाक पर हाथ लगाए उसके कार्यों को ध्यान पूर्वक देखने लगे चमड़े की ढ़ेर को साफ करते करते शाम हो गई देव ऋषि ने सोचा संभवत अब यह किसी मंदिर में जाएगा या अपने निवास पर ही भगवान का नाम स्मरण करेगा पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया अंतर्मन में बरी उपेक्षा लिए प्रतीक्षारत देव ऋषि के क्रोध की सीमा न रही वे सोचने लगे कि यदि यह दम मुझसे श्रेष्ठ है तो यह मेरा अपमान है कहीं भक्त ऐसे होते हैं अतः से आवाज आई थोड़ी देर और इसकी गतिविधि देखनी चाहिए अतः हुए रुक गए जब रात होने लगी तो उसने चमड़ी के ढेर को समेटा जितना चमरा दिन भर में साफ कर लिया था उसे एक गठरी में बांध और जो चमरा साफ ना हो पाया था उसे एक और समेट कर रखा फिर एक मैला कपड़ा लेकर सिर से पैर तक अपने पसीने को पोछ कर घुटनों के बल बैठ गया और हाथ जोड़ कर भाव विभोर हो कहने लगा प्रभु मुझे क्षमा करना मैं बिना पढ़ा व्यक्ति आप की पूजा करने के ढंग को भी नहीं जानता मेरी आपसे यही विनय है कि मुझे कल भी ऐसी सुमति देना कि आज की तरह ही आपके द्वारा दी गई चाकरी को ईमानदारी के साथ पूर्ण करूं देवरी सीने देखा कि भगवान विष्णु उसके समीप खरे मुस्कुरा रहे हैं वह बोले देवर्षि समझ में आया इस भक्तों की उपासना की श्रेष्ठ था का रहस्य देवर्षि का अभिमान चूर्ण हुआ और वे सच्चे ह्रदय से भगवान की भक्ति में लीन हो गए तो दोस्तों यह कमाल की कहानी भगवान विष्णु और देवर्षि नारद की है जी हां दोस्तों भगवान जगन्नाथ और देवर्षि नारद की कहानियां काफी प्रचलित है यह कहानियां हमें काफी कुछ सिखाती है इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान ने हमें अपने रूप में कर्म दिया है उन्होंने जो कर्म दिया है हमें वही सबसे बड़ी पूजा है तो आप भी अपने कर्म को पूरी ईमानदारी से कीजिए और अपने कर्म की पूजा कीजिए यह याद रखिए कि यह कर्म आप को भगवान ने दिया है अपने रूप में यानी कि आपका कर्म ही आपका ज्ञान है आपका ज्ञान ही आपका गुण है और गुण ही सत्य है और सत्य ही सनातन है और सनातन ही भगवान है धन्यवाद तो यह कहानी कैसी लगी दोस्तों यह कमेंट में जरूर बताएं ताकि हम आपके लिए ऐसी ढेर सारी कहानियां लाते रहे फिर मिलूंगा दोस्तों अगले आर्टिकल में।

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