भगवान सूर्य की महानता। knowing the god sun.
वैज्ञानिकों के लिए सूर्य एकमात्र जलता हुआ आग का गोला भर है जिसमें हीलियम और हाइड्रोजन की रासायनिक क्रियाएं चलती रहती है जबकि ज्योतिष में सूर्य ग्रह के अधिपति हैं और कारण स्तर पर ब्रह्मांड के केंद्र तथा इसके उद्गम अध्यात्मिक रुप से सूर्य व्यक्ति की आत्मा है वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है आश्चर्य नहीं कि भारत में गायत्री महामंत्र के रूप मैं सूर्य उपासना इसकी आध्यात्मिक संस्कृति के केंद्र में रही है सूर्य उपासना की विशेषता इसकी सरलता एवं सार्वभौमिकता में है जो विश्व के हर कोने में किसी न किसी रूप में प्रचलित मिलती है यह सूर्य के प्रकृति के अधिपति होने के कारण का स्वाभाविक भी है प्रारंभिक दौर में मनुष्य का जीवन प्रकृति की गोद से ही शुरू हुआ था भारत में वैदिक काल में सूर्य उपासना व्यापक रूप में प्रचलित रहे वेदों में सूर्य को विभिन्न नामों से पुकारा गया जैसे सूर्य सविता मित्र विष्णु हुस्न अश्विन आदित्य रोहिता आदि वेदों के अनुसार सूर्य की उपासना मनुष्य को हर तरह की अशुद्धि एवं पाप से मुक्त कर देती है यह मनुष्य को रोग मुक्त कर देती है असाध्य नेत्र रोगों का इसकी किरणों से उपचार होता है वैदिक युग में गायत्री महामंत्र के रूप में सूर्य की उपासना देवी संस्कृति के केंद्र में आ गई थी उपनिषदों में सूर्य का पुरुष के रूप में विकास हुआ है प्राण आत्मा ब्रह्म प्रजापति के रूप में सूर्य का प्रतिनिधित्व इसके आध्यात्मिक स्वरूप को इंगित करता रहा है सूर्य को परम सत्य ब्रह्म के साथ एक मानकर देखा जाता है वह साथ ही ओंकार के रूप में सूर्य की समतुल्य ता परिभाषित होती है कुछ स्थानों पर आदित्य के रूप में तो कुछ स्थानों पर उनके सविता रूप को परम सत्य ब्रह्म के साथ एक देखा जाता है इस तरह उपनिषदों में वैदिक सूर्य देवता की ब्रह्म के रूप में उपासना की जाती रही कठोपनिषद में सूर्य की आदित्य के रूप में प्रशंसा है जिसमें इसे स्व प्रकाशित माना गया है जिसको जाने से मनुष्य मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है तथा मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है सूर्य की प्रातः संघ दोपहर की उपासना मन को शुद्ध करती है सूर्य की उपासना सांसारिक इच्छाओं को भी पूरा करती है छांदोग्य उपनिषद में सूर्य के माध्यम से पुत्र प्राप्ति की बात कही गई है सूर्योपनिषद तथा चक्षुशोपनिषद सूर्य की ही उपासना के लिए समर्पित है चाक्षुष विद्या को नेत्रों के विकार के उपचार के रूप में विस्तार से बताया गया है सूर्योपनिषद में सूर्य को आत्मबोध प्रदान करने वाला स्वास्थ्य समृद्धि और पवित्रता देने वाला बताया गया है कौशितकी और मैत्री उपनिषदों मैं सूर्य उपासना की विधि को जप आचमन प्राणायाम मार्जन औऱ यौगिक अभ्यास के रूप मे बताया गया है ब्राह्मण आरण्यक और उपनिसद सूर्य भगवान की श्रेष्ठता को ही प्रतिपादित करते हैं श्रोत्र काल से होकर महाकाव्य काल का समय आया जिसमें उपनिषद अभिव्यक्ति एवं अमूर्त सूर्य ने एक व्यक्तिक एवं मूल स्वरूप धारण किया जिसके फलस्वरूप सूर्य भगवान के माननीय स्वरूप का तथा सूर्य देवता का सौर संप्रदाय के रूप में विकास हुआ रामायण महाकाव्य में भी सूर्य उपासना के विविध रूप मिलते हैं भगवान राम लक्ष्मण तथा सीता माता हाथ उठाकर सूर्य की उपासना किया करते थे भगवान राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ था श्रवण कुमार के माता पिता सूर्य उपासना करते थे दोस्तों मैं राम आप लोगों को इस आर्टिकल में बताया हूं भगवान सूर्य के बारे में कि अध्यात्म वेद उपनिसद की महिमा का बखान किस प्रकार करते हैं।
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